वर्षों बीत गए हैं बचपन की उन गलियों को छोड़े हुए जहाँ रामलीला और नवरात्रों के साथ सहरी के लिए उद्घोषकों की आवाज कानों में पड़ने के साथ ही जागा करता था. शाहजहांपुर के वो दिन और बचपन में लखीमपुर में अपने गाँव की वो ढेर सारी यादों के बीच कोई ईद ऐसी नहीं गुज़री जब पिता जी का यह पूंछना आज ….. अपने बटाईदार बाशिद चाचा के घर कब जाओगे … और मेरा यह जबाब कि चच्ची ने आपके लिए सेवइयां रखी हैं ….. अरे ! तुम कब हो आए, उनका स्तंभित होकर यह पूंछना …. और साथ ही उनकी आंखों में यह संतोष उभरता कि उनके दिए संस्कार सही दिशा में हैं.
आज सब बहुत याद आ रहा है. विगत तीस वर्षों में प्रायः ऐसा ही संयोग रहा कि कोई न कोई मित्र मेरे सामने इस प्रकार रहा है कि हर ईद पर मुझे मेरी सेवैयाँ मिल सकें. सिर्फ़ इस बार मेरा पड़ोस खाली है और मैं डायरी में हाफिज, शकील, इकबाल दादा सहित …. अपने मित्रों के वर्षों पहले के नंबर डायरी में खोज रहा हूँ …..
यह भी संयोग है कि आज ईद के साथ ही पूज्य बापू और शास्त्री जी की जयंती भी है. चारो तरफ़ विस्फोटों की गूँज, गलियों बाज़ारों की अफरातफरी, हाहाकार और अस्पतालों में मची चीख पुकार के बीच मन बहुत ही उद्विग्न है. किस से शिकायत करें और क्या कहें …. दिल के बहुत करीब यह बातें आज किसी से करने का मन है और आँखे नम हैं.
चलो दुआ करें की यह धुंआ जो आंखों में भरता जा रहा है जल्दी ही छंटे. और हर बार की तरह बुराई के रावण पर अच्छाई की विजय हो….. आज के दिन अपनी अवधी संस्कृति की सुरभित स्मृति के साथ मेरे यह विचार मुठ्ठी भर बीज की तरह सब शांतिप्रिय मित्रों को सप्रेम भेंट.
शोभा
अक्टूबर 02, 2008 @ 10:32:00
वाह ! बहुत सुंदर. पढ़कर मुझे भी पुराना जमाना याद आ गया.एक सुंदर और सामयिक प्रस्तुति के लिए आभार.
संगीता पुरी
अक्टूबर 02, 2008 @ 10:43:00
देखिए …..हिन्दी ब्लाग के जरिए ही कहीं शुरूआत हो जाए…. रामलीला और ईद के अनोखे संगम की…..ईद और नवरात्र की बहुत बहुत बधाई।
Udan Tashtari
अक्टूबर 03, 2008 @ 01:16:00
बढ़िया यादों का झरोखा!!शुभ दिवस की बधाई एवं शुभकामनाऐं.
मनुज मेहता
अक्टूबर 08, 2008 @ 06:23:00
चलो दुआ करें की यह धुंआ जो आंखों में भरता जा रहा है जल्दी ही छंटे. और हर बार की तरह बुराई के रावण पर अच्छाई की विजय हो….. Aamen!
मनुज मेहता
अक्टूबर 08, 2008 @ 06:23:00
यह पोस्टलेखक के द्वारा निकाल दी गई है.
jayaka
अक्टूबर 10, 2008 @ 13:51:00
Burai par achchhai ki humesha jeet hi hoti aai hai!… bhale hi samay lag sakata hai…lekin burai ka ant to hona hi hota hai!…great one!
Rahul Singh
सितम्बर 07, 2010 @ 03:44:32
बहुत खूब. akaltara.blogspot.com पर 'राम-रहीमःमुख्तसर चित्रकथा' आपकी रुचि का होगा.