कहां है दीन और इस्लाम …. हे राम.! [कविता] – श्रीकान्त मिश्र ’कान्त’

बाशिद चाचा ……
कहां हो तुम,
तुम्हारे ……
पंडी जी का बेटा
तुम्हारा दुलारा मुन्ना
हास्पिटल के वार्ड से
अपनी विस्फोट से
चीथड़े हुयी टांग
अंत:स्रावित अंतड़ियों की पीड़ा ले
डाक्टरों की हड़्ताल
और दवा के अभाव में तड़पती,
वीभत्स हो चुके चेहरे वाली
मुनियां की दहलाती चीखों और
परिजनों के हाहाकार के बीच
तंद्रावेशी देखता है बार बार
तुम्हारे पन्डीजी… और तुमको 


शायद अब भी मनाते होंगे
होली और ईद साथ साथ
ज़न्नत या स्वर्ग में जो भी हो
खाते हुये सेवैयां और …..
पीते हुये शिव जी का प्रसाद भंग
होली की उमंग और ठहाकों के संग
टूटती … उखड़ती जीवन की
नि:शेष श्‍वासों के बीच
छोटे से मुझको लेने होड़ में
मेरा ललाआपस में जूझते
शरीफ़ुल और इकबाल भैया
हिज़ाब के पीछे से झांकती
भाभीजान का टुकटुक मुझे ताकना
और अचानक मुझे लेकर भागना
इंजेक्शन का दर्द
चच्ची के मुन्ने को अब नहीं डराता है
विस्फोट की आवाज के बाद से,
टी वी पर देखा …. वो अकरम,
मेरा प्यारा भतीजा …….
मारा गया किसी एन्काउंटर में
….. कहां खो गया सब
औरतों को ले जाते हुये 
लहड़ू में…. पूजा के लिये 
हाज़ी सा दमकता… 
वो तुम्हारा चेहरा
मंदिर पर भज़नों के बीच
ढोलक पर मगन चच्ची


छीन लिये हैं आज…  
वोट वालों ने हमसे हमारे बच्चे…
और भर दिये हैं उनकी मुठ्ठी में
नफ़रत के बीज
कहां है दीन और इस्लाम
हे राम……..! 

7 टिप्पणियां (+add yours?)

  1. शोभा
    सितम्बर 26, 2010 @ 08:33:27

    वाह बहुत सुन्दर।

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  2. भारतीय नागरिक - Indian Citizen
    अक्टूबर 10, 2010 @ 17:11:21

    कविता के रूप में संवेदनायें प्रकट की हैं..

    प्रतिक्रिया

  3. गीता पंडित (शमा)
    दिसम्बर 01, 2010 @ 11:25:56

    संवेदनशील मन पीड़ित होता है तो आप जैसे रचनाकार का जन्म होता…उपरोक्त कविता इसी का एक सुंदर उदाहरण है…आज संवेदनाएं मृत प्राय:हो गयी हैं…. लेकिन आपकी लेकानी में जीवित हैं….बधाई आपको और शुभ-कामनाएँ….गीता

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  4. श्रीकान्त मिश्र ’कान्त’
    दिसम्बर 01, 2010 @ 17:11:02

    आभार गीता जी …..

    प्रतिक्रिया

  5. गीता पंडित (शमा)
    फरवरी 03, 2011 @ 08:43:37

    लेखनी पढ़ें लेकानी को…सॉरी…

    प्रतिक्रिया

  6. prritiy---------sneh
    अप्रैल 06, 2011 @ 09:46:28

    bahut khoobsurat rachna hai, padhna achha laga.shubhkamnayen

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  7. DR. ANWER JAMAL
    जून 18, 2011 @ 18:39:39

    आपने सच का मार्मिक चित्रण किया है।हर लफ़्ज़ दिल पे चोट करता है।http://ahsaskiparten.blogspot.com/

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