……..भैय्या ! मैं तो इसीलिए ”बुध्दिजीवी” शब्द से ही घृणा करता हूं और उसे ”रूपजीवा” या ”रूपजीवी” शब्द के समान मानता हूं। अब अप जाने आपके लिए ”बुध्दिजीवी” का अर्थ बुध्दि यानी विवेक की ”वेश्यावृत्ति करने वाला” या ”बुध्दि से बेवफाई करने वाला।” वैसे आप मेरी मुफ्त की सलाह मानें तो मेरी ही तरह ”बौध्दिक” शब्द का प्रयोग कर सकते हैं वह भी मूर्खों में मेरी तरह न कि बुध्दिजीवियों में।
अभी कुछ दिन पूर्व समाचार पत्रों, टी0वी0 चैनलों पर एक बहस छिड़ी थी। एक विश्वविद्यालय के माननीय कुलपति ने अपने एक साक्षात्कार में महिला लेखिकाओं के लिए ”छिनाल” शब्द का प्रयोग किया। कुलपति महोदय के इस ”शब्द प्रयोग”का प्रतिवाद हुआ। बुध्दिजीवियों ने कहा कि ”छिनाल” शब्द का अर्थ ”वेश्या” होता है तो क्या कुलपति महोदय महिला लेखिकाओं को ”वेश्या’ कह रहे हैं। अब कुलपति महोदय ने वास्तविक ”बुध्दिजीवी कुलाटी” मारी और बयान दिया कि ”छिनाल” से उनका अभिप्राय ”वेबफा” से था। अब यह मेरे जैसे मूर्खों के शब्दकोश में नई ज्ञानवृध्दि थी।
इस बीच कुछ अच्छे शीर्षकों से विभिन्न ”ब्लागों” पर मेरी दृष्टि गई। इस घटना से संबधित एक शीर्षक था – ”हम छिनाल ही भले।” इस बहस में जो पोस्ट दिखाई दिए उनमें जमकर बुध्दिजीवी नंगई स्पष्ट दिखाई दे रही थी। इस पर लिखना तो उसी समय चाह रहा था किंतु अन्य इससे अधिक महत्वपूर्ण विषय हाथ में थे और फिर दैनिक जीवन की व्यस्तताएं।
अब मेरा ध्यान गया ”छिनाल” शब्द की प्रथम परिभाषा ”वेश्या” पर। प्रसिध्द संस्कृत-हिन्दी, शब्द कोश द्वारा श्री वामन शिवराम आप्टे में ‘वेश्या’ शब्द का अर्थ इस प्रकार किया गया है –
वेष्या – (वेशेन पण्ययोगेन जीवति – वेश् + यत् + टाप्) – बाजारू स्त्री, रंडी,
गणिका, रखैल (मृच्छ – 1/32, मेघ0 35)
मृच्दकटिकम् संस्कृत नाटक है और मेघदूतम् महाकवि कालिदास का खण्डकाव्य जिनमें इस शब्द का प्रयोग किया गया है।
इस प्रकार दो शब्द और मिले। रंडी एवं गणिका। जिन्हें संस्कृत शब्द कोष में तलाशा जा सकता था।
रंड: – (रम् + ड) वह पुरूष जो पुत्रही मरे,
रंडा – फूहड़ स्त्री, पुंश्चली, स्त्रियों को संबोधित करने में निन्दापरक शब्द,
रंडे पंडित मानिनि – पंचतंत्र
संभवत: रंड: से ही लोकभाषा में रांड़ और रण्डी शब्द प्रचलित हुआ होगा।
रत् – (मू0क0कृ0) रम् + क्त – प्रसन्नता, खुश
किंतु इससे एक शब्द बना
रतआयनी – वेश्या, रंडी
ऐसा अर्थ किया गया। संस्कृत का एक अन्य समानार्थी शब्द मिला –
गणिका – (गण् + ठञ + टाप्) रण्डी, वेश्या – गुणानुरक्ता गणिका च यस्य बसन्तशोभेव वसन्तसेना – मृच्छंकटिकम
इससे मिलते-जुलते अर्थ वाले एक अन्य शब्द का संस्कृत साहित्य में प्रयोग हुआ है – ”रूपजीवा”
रूपम – (रूप : क्, भावे अच् वा) – आजीवा – वेश्या, रंडी, गणिका
जहां तक ”छिनाल” शब्द का अभिप्रेत है तो एक शब्द मिला।
छिन्न – (भू0क0कृ0) छिद् + क्त) – छिन्ना – वारांगना, वेश्या
इसी तरह से ”वारांगना” शब्द भी ‘वेश्या’ अर्थ में अभिप्रेत मिला।
वार: – (वृ + घञ्) – सम: – अंगना – नारी, युवति, योषित, वनिता,
विलासिनी – सुन्दरी – स्त्री
अर्थात ”वार:” शब्द के साथ इनमें से कोई भी शब्द जोड़ लिया जाए तो उसका अर्थ होगा –
”गणिका, बाजारू औरत, वेश्या, पतुरिया, रण्डी। ”वैश्या” के अर्थ में एक अन्य शब्द मिला।
वारवाणि: या वारवाणी – वेष्या
इतने श्रम के पश्चात भी ‘वेश्या’ के तमाम अर्थ तो मिले जो ”छिनाल” का अर्थ बताया गया था, किंतु ”छिनाल” शब्द संस्कृत -हिन्दी कोश में नही मिला। यद्यपि मिलते-जुलते उच्चारण वाला ”छिन्ना” शब्द मिला जिसका अर्थ भी ‘वेश्या’ था।
चूंकि शब्द प्रयोग ”छिनाल – बेबफा” माननीय कुलपति महोदय ने किया था। अत: मैने हिन्दी के प्रसिध्द विद्वान डा0 हरदेव बाहरी के ”शिक्षक हिन्दी शब्द कोष में इस शब्द का अर्थ तलाश किया। डा0 बाहरी के विषय में उल्लेखनीय है कि उनकी डी-लिट की डिग्री ”शब्दार्थ विज्ञान” में ही है। उनके शब्दकोष में ”छिनाल” शब्द का अर्थ था।
छिनाल – (वि0) पर पुरूषों से संबध रखने वाली (स्त्री) दुश्चिरित्रा स्त्री-पुंश्चली।
एक अन्य मिलते जुलते शब्द ”छिनार” का भी यही अर्थ है।
छिनार – (स्त्री) व्यभिंचारिणी स्त्री, पुंश्चली
मैं एक वाक्य प्रयोग करता हूं। मैं अपने मित्र से कहता हूं कि ”यार ! ”अमुक” बड़ी ”छिनाल” है वह इसका अर्थ ”वेश्या” समझता है। हां आप चाहें तो ”बेवफा” कह सकते हैं भैय्या ! मैं तो इसीलिए ”बुध्दिजीवी” शब्द से ही घृणा करता हूं और उसे ”रूपजीवा” या ”रूपजीवी” शब्द के समान मानता हूं। अब अप जाने आपके लिए ”बुध्दिजीवी” का अर्थ बुध्दि यानी विवेक की ”वेश्यावृत्ति करने वाला” या ”बुध्दि से बेवफाई करने वाला।” वैसे आप मेरी मुफ्त की सलाह मानें तो मेरी ही तरह ”बौध्दिक” शब्द का प्रयोग कर सकते हैं वह भी मूर्खों में मेरी तरह न कि बुध्दिजीवियों में।
शिवेन्द्र कुमार मिश्र
आशुतोष सिटी, बरेली उ. प्र.।