तुम हमारे जख्म फिर से मत कुरेदो
’कान्त’ पत्थर वोट का संसद से चलाया जायेगा …. [गजल] – श्रीकान्त मिश्र ’कान्त’
27 दिसम्बर 2009 2 टिप्पणियां
in अयोध्या, कविता, गजल, राजनीति, श्रीकान्त मिश्र 'कान्त'
मां …. [कविता] – भोजराज सिंह
11 दिसम्बर 2009 2 टिप्पणियां
in नवांकुर
कब्र के आगोश में जब थक कर सो जाती है मां
जीत लो चाहे अवनि आद्यान्त तक ..[कविता] श्रीकान्त मिश्र ‘कान्त’,
06 दिसम्बर 2009 3 टिप्पणियां
in कविता, श्रीकान्त मिश्र 'कान्त'
जीत लो चाहे अवनि आद्यान्त तक
जीत ना पाओ मुझे तुम कभी भी
अरे मैं तो ‘तत्व’ हूँ
क्या ‘व्यवस्था’ से मुझे लेना है
‘पंच तत्वों’ की निरी भंगुर
महा इस सृष्टि से,
आद्यान्त अभिनव ब्रह्म से
मैं परे हूँ …..
बंधे हो तुम इन्द्रियों की पाश में,
यों ही पा सकोगे न कभी
जीत लो चाहे अवनि आद्यान्त तक
जीत ना पाओ मुझे तुम कभी भी
अरे मैं तो स्वयं
तुझ में गूंज कर भी
नहीं तुझ में लिप्त हूँ,
और तू तो स्वयं
मुझसे दूर होकर,
मगन है निस्सार में
‘बाह्य’ को कर बन्द,
‘अंतर’ खोल.. ढूंढ़ लो पाओ अभी
आज तो तू सोच, तू मैं और मैं तू
बस मिलो … आओ अभी
जीत लो चाहे अवनि आद्यान्त तक
जीत ना पाओ मुझे तुम कभी भी