नये वर्ष की नयी उमंगे
नवसंचार जगायें
बीनें दुर्गुण मानवता से
आओ अलाव जलायें
नवसंचार जगायें
बीनें दुर्गुण मानवता से
आओ अलाव जलायें
कोहरे की चादर से लिपटा
सूरज शीतल आया
पुरइन पात चमकते मोती
पाला भूतल छाया
धुनी कपास उठायें नभ से
जग ओढ़ाव बनायें
आओ अलाव जलायें
हिम शीतल बयार जब बहती
हिम खण्डों से गोले
धूप दुशाला ओढ़ निकलती
जब पड़ जाते ऒले
गांव गली गन्ना गुड़ महके
तिल रेवड़ी सब खायें
आओ अलाव जलायें
रीता बीता बरस गया सब
सबकी जेबें खाली
आतन्कित महंगाई करती
ज्यों डरपाये काली
ग्राम नगरवासी सब मिलकर
नया साल चमकायें
आओ अलाव जलायें
shikha varshney
दिसम्बर 31, 2011 @ 16:31:49
बेहद सकारात्मक, खूबसूरत गीत.आपको भी नव वर्ष की समस्त शुभकामनाएँ
श्रीकान्त मिश्र ’कान्त’
दिसम्बर 31, 2011 @ 16:49:29
तृषाकान्त पर पधारने पर आपका हार्दिक आभार एवं नववर्ष की अनंत मंगल कामना शिखा जी
गीता पंडित
जनवरी 01, 2012 @ 17:26:16
आहा … सुन्दर नवगीत….आपको भी नव वर्ष की ढेर सारी शुभ कामनाएँ…