. वाह रे ! राजनीति की रामलीला…… राम और रावण भीड़तंत्र के थियेटर में भरत मिलाप का दृश्य अभिनीत कर रहे हैं. ऐसे में बेचारे भरत पादुकाएँ लेकर अयोध्या के स्थान नागपुर से दहाड़ रहे हैं. देश के गाँव गाँव और खेत खलिहान तक फैले चुनावी थियेटर की दर्शक दीर्घा में वोट का टिकट जेब में डाले जनता रामकथा का यह परिदृश्य देख कर अपने सिर के बाल नोचने पर विवश है. विश्वसनीयता…….किस पर और कैसी? शिकायत किससे …? बस ठेठ अवधी में कह रही है
“…. का यही रामलीला दिखावे क हमका भीड़तंत्र का टिकट दिए रहहु बाबा … ! अब का करी … सरजू मैया के पुल पर नुची मुरगी के पंखन क तरह फैला जूता चप्पल औ बोरीन माँ घसीटी जात लाशन के संग अजुध्या के नालीं म बहत खून….. ओहि के बाद बंबई के धमाका और बाद का तांडव ….. भुलाये ना भुलावा जाति है. अब वोटन क खातिर सबै सुथरे हुई गए हैं. जय हो सीता मैया के…सबका बेवकूफ समझ रहे हैं ….”
. आम ग्रामीण से लेकर संभ्रांत शहरी तक .. यह बेमेल विवाह देखने को अभिशप्त हैं. संभवतः सत्ता सुन्दरी का वरण करने के लिए सब जायज है ……. जय हो ….. कल्याण हो इस देश का.
अमिता 'नीर'
फरवरी 08, 2009 @ 07:42:00
. का यही रामलीला दिखावे क हमका भीड़तंत्र का टिकट दिए रहहु बाबा … ! सटीक बात …… परन्तु इसका जबाब भी जनता को ही देना होगा
अनिल कान्त :
फरवरी 08, 2009 @ 09:06:00
सही कहा आपने ….आपका लेख काबिले तारीफ़ है
शोभा
फरवरी 08, 2009 @ 16:11:00
वाह क्या बात है. बहुत सुंदर प्रतीक लिए हैं.
महावीर
फरवरी 11, 2009 @ 21:26:00
बहुत सटीक सुंदर प्रस्तुति है श्री कान्त जी।महावीर शर्मा